Wednesday, September 28, 2016

पाठी पंडित प्रेम सिंह जी


                                                 पाठी पंडित प्रेम सिंह जी का जन्म परम पूज्य प्रात: वन्दनीय बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के अवतार धाम, लीला धाम, वाणी प्रकटया धाम, मुक्ति के द्वार श्री छुडानी धाम मे पंडित हजारी लाल जी के घर माता जैदेई जी की सुभागी कोख से हुआ | पाठी पंडित प्रेम सिंह जी के पिता पंडित हजारी लाल जी भी बहुत धार्मिक विचारो वाले थे

उनका भी बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के साहित्य, वाणी से बहुत लगाव था | वह स्वम सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालो के शिष्य हुए और छतरी साहिब मंदिर छुडानी धाम मे सेवा करके सतगुरू जी के धाम को गये | पंडित हजारी लाल जी के इन्ही विचारों की छाप उनके पुत्रों व परिवार के बाकी सदस्यों पर दिखती है | पूरे परिवार की सतगुरू जी के प्रति अटूट निष्ठा है | पाठी प्रेम सिंह जी की भी बचपन से ही बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के साहित्य मे बहुत रूचि थी | छोटी ही आयु मे पूरा नित्य-नियम आप जी को कंठस्थ हो गया था| अपनी आयु के बच्चो को भी आप बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी से जोडते थे व उनको सुबह श्याम छतरी साहिब मंदिर मे जाने के लिये प्रेरित करते थे 18-19 वर्ष की आयु मे ही आप जी ने 6-7 युवा पाठियों का समूह बनाया | छुडानी धाम से ऐसे युवा इक्कट्ठे किये जो कक्षा 10 से उपर पढ़े हो और सतगुरु जी के प्रति श्रधा भाव हो और नसों के जाल में न फंसे हो उनको आप प्रतिदिन श्री छतरी साहिब जी में ले जा कर पाठ करना सिखाते थे  आपने अपने साथ जय सिंह जी, रामचन्द्र जी, नफे जी, इंद्र जी आदि कई युवाओं को जोड़ा जो बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी का पाठ करे | आप जी की प्रबल इच्छा होती थी कि कोई हमसे अपने घर बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी का अखंड पाठ करवाये और वो पाठ कम से कम खर्च में करने पर विश्वास रखते थे ताकि कोई गरीब निर्धन भी सतगुरु जी की वाणी का यह महान अनुष्ठान करा सके | 
पाठी पंडित प्रेम सिंह जी

पहला अखंड पाठ आप जी ने छुडानी धाम के ही निवासी धौला के घर किया धौला हरिजन जाति से था | उनके घर पाठ करने का उदेश्य यह था कि “समाज से भेदभाव मिटाया जाये व लोगो को समझाया जाये कि बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी का अखंड पाठ कोई भी करवा सकता है | यह सब कार्य जात-पात से ऊपर उठकर है” | आप जी का मानना था कि यह सब जात-पात हम सबने ही बनाई है बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी आपको मनुष्य का चोला देते समय यह नही देखते है  की इसको किसी ब्राह्मण के घर जन्म लेना है या किसी जाट या किसी अन्य जाति मे यह समाज का विभाजन ऊंची-जाति, निची-जाति हम लोगो ने ही किया वरना वास्तव मे तो हम सभी का परमपिता परमात्मा एक ही है | आप जी के पिता पंडित हजारी लाल जी सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालो के शिष्य हुए | आप जी ने सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भुरीवालो की गुरूगद्दी के दूसरे गुरू स्वामी लालदास जी महाराज रकबे वालो से नाम दान लिया | एक बार की बात है कि स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज श्री छुडानी धाम में मेले के अवसर पर आये हुए थे उस समय पंडित जी आपने सभी साथियों के साथ महाराज जी के पास पहुंचे ओर उसने नाम-दान की दीक्षा देने की विनती की | तब स्वामी ब्रह्मानन्द जी स्वम् इन सभी को अपने गुरु महाराज स्वामी लाल दास जी महाराज रकबे वालों के पास लेकर गए और नाम-दान की दीक्षा दिलवाई। बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी मे भक्त हरलाल जी का वर्णन आता है | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने भक्त हरलाल जी को घर पर रहकर ही भक्ति करने की प्रेरणा दी थी और अपनी वाणी मे फरमाते है कि                          


            गरीब, गाडी बाहो घर रहो, खेती करो खुशहाल |                                                  
              सांईं सिर पर राखियो, तो सही भक्त हरलाल  | |                  
                         
                                            बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी आप पर भी उपयुक्त बैठती है | आप भी ग्रहस्थ  रहे, अपने परिवार का पालन पोषण किया और बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के प्रति अटूट श्रध्दा रखी | आप हमारी गरीबदासीय सम्प्रदाय के अनेको संत महात्माओ के प्रिय पाठी के रूप मे जाने जाते थे | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की कृपा से आप जी ने श्रीमहंत गंगासागर जी, श्रीमहंत दयासागर जी , गंगानन्द जी महाराज, स्वामी रामदेवानंद जी महाराज,अवधूत स्वामी भक्तराम जी, स्वामी चरण दास ब्रह्मचारी जी, स्वामी विधानंद जी महाराज, अनेको ही गरीबदासीय संत महापुरुषो के सानिध्य मे पाठ किये | आप जी की आवाज बहुत ही रसीली थी | जब आप बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी का पाठ करते थे, तब जहाँ तक वाणी पाठ की आवाज जाती, वहाँ तक के लोग वाणी को सनकर मंत्र-मुग्ध हो जाते थे और दरबार साहिब जी की ओर खींचे चले आते थेस्वामी विधानंद जी महाराज श्री छातरी साहिब छुडानी धाम में रहकर सेवा करवाते थे तो सुबह ब्रह्ममुहूर्त में पाठ करने के लिए पंडित जी को ही बुलाते थे. कहते है कि जब आप सुबह होरी हो का पाठ करते तो जहाँ तक आपकी आवाज जाती लाउडस्पीकर के माध्यम से वहाँ तक के लोग सुबह-सुबह नींद से उठ कर चारपाई पर बैठ जाते थे पाठ सुनने को. आप जी का मानना था कि हम सभी को प्रत्येक पूर्णिमा व तीनो मेलो पर छतरी साहिब मंदिर छुडानी धाम मे पहुंच कर हाजरी लगानी चाहिये और बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के धाम मे तन-मन-धन से सेवा करनी चहिये | आप जी के मुख  से सबसे ज्यादा उच्चारित होने वाला वाक्य 'जय बन्दीछोड़' | जब भी कोई सामने से आपसे सत-साहिब, राम-राम, नमस्ते बोलता तो आपका एक ही उत्तर होता था 'जय बन्दीछोड़' बन्दीछोड़ ! बन्दीछोड़ ! बन्दीछोड़ ! जहाँ भी आप बैठते थे तो वही बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की ज्ञान चर्चा शुरू कर देते  थे |  
   सन 1970 की बात है पंडित जी अपने पाठियों के समूह के साथ गरावड़ गाँव में बन्दीछोड़ जी की वाणी के अखंड पाठ का पूर्ण भोग लगा रहे थे तभी वहां संगत में उपस्थित एक बच्चे को दौरे पड़ने लगे एक पल में ही उस बच्चे की तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ गई सभी घबरा गये पंडित जी भोग का शब्द गा रहे थे, तभी पंडित जी ने दरबार साहिब जी के समीप बैठे रामचंद्र पाठी से कहा कि "रामचंद्र, इस बालक को सतगुरु जी की वाणी के पाठ का कुम्भ का जल पिला दो यह ठीक हो जायेगा"। रामचंद्र जी ने ऐसा ही किया और जैसे ही उन्होंने उस बालक को कुम्भ का जल पिलाया तो वह बालक बिलकुल स्वस्थ हो गया और आज वर्तमान में भी वो सकुशल अपने परिवार का पालन-पोषन कर रहा है।


                     समय आगे बढा और आप जी का बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की शरण मे जाने का समय समीप आ गया | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने जो वाणी प्रचार की जिम्मेदारी देकर आपको यहाँ भेजा था, आप जी ने उसको बखुबी निभाया | एक दिन अचानक से आप बीमार हो गए | और कुछ समय बाद 24 अप्रैल 2016 अपनी जीवन यात्रा  समाप्त करके बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की शरण मे चले गये | शायद ही कोई  ऐसा पाठी वर्तमान समय मे हो जिसकी आप जैसी रसीली आवाज हो, बिलकुल शुद्ध पाठ करने वाला हो और बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के प्रति इतनी अटूट श्रध्दा हो | आप जी का अंतिम संस्कार आपके जन्म स्थान श्री छुडानी धाम मे ही हुआ | सर्वोच्य गरीबदासीय पीठ छतरी साहिब मंदिर छुडानी धाम के पीठाधीश्वर मेहरबान साहिब  श्रीमहंत दयासागर जी, आप की अंतिम यात्रा मे शामिल हुए | आप जी की अंतिम यात्रा सर्वोच्य गरीबदासीय पीठ छतरी साहिब मंदिर के अंदर से निकली जहाँ आपके पार्थिव शरीर द्वारा अंतिम नमस्कार करवाया गया, क्युकी आप जी की पुण्य आत्मा तो पहले ही बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के चरणो मे विराजमान हो चुकी थी | आप जी की  अंतिम यात्रा मे जन सैलाब उमड़ पडा, सभी ने आपको नम आंखो से विदाई दी | छतरी  साहिब मंदिर छुडानी धाम मे सदगुरु कबीर साहिब जी के प्राकटय दिसव के उपलक्ष्य मे हुए अखंड पाठ के भोग के उपरान्त श्रीमहंत दयासागर जी ने आपजी के बारे मे आई हुई संगत को सुचना दी | श्रीमहंत दयासागर जी ने अपने सम्बोधन में अरदास करते हुए  कहा कि "सतगुरु बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी, मै पंडित प्रेम सिंह जी के परिवार व आई हुई संगत की ओर से अरदास करता हूँ कि हम सभी के प्रिय पाठी, वाणी प्रचारक पंडित प्रेम सिंह जी की पुण्य आत्मा को अपने चरण कमलो मे स्थान प्रदान करना" | हम सभी ऐसे भक्त, पाठी, बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के वाणी प्रचारक को शत शत नमन करते है और साथ ही धन्य है आपकी माताजी जैदेई जी व पिता पंडित हजारी लाल जी जिन्होने आपको जन्म दिया


पाठी पंडित प्रेम सिंह जी के वाणी प्रचार के उसी उदेश्य को आगे बढ़ाने के लिए यह पाठी पंडित प्रेम सिंह जी गरीबदासीय ई-ग्रंथालय बनाया गया है | जहाँ भक्तों के लिए एक जगह ही ज्यादा से ज्यादा गरीबदासीय साहित्य उपलब्ध कराया जायेगा और सभी संत–माहात्मों के प्रवचन उपलब्ध कराये जायेंगे |                     

 श्री रत्न माला 
" श्री रत्न माला जिसको बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की ही ज्योत स्वामी ब्रह्मसागर जी महाराज  
भुरीवालों की गुरूगद्दी के दूसरे गुरू स्वामी लाल दास जी महाराज रकबे वालों के सुयोग्य शिष्य पाठी 
पंडित प्रेम सिंह जी की याद मे यह डिजीटल प्रकाशन करवाया गया है | नीचे दीये गए लिंक से आप इसे पढ सकते है  download कर सकते है



4 comments:

  1. सत् साहिब जी

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  2. बहुत ही अच्छे पाठी थे पंडित जी

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  3. आज किसी के पास सुर है तो मधुर आवाज नही है और मधुर आवाज है तो सुर नही है । परन्तु सद्गुरु जी ने पाठी पंडित प्रेम सिंह जी को दोनों ही अमूल्य रत्न आशीर्वाद स्वरूप दिए हुए थे। जब वो सद्गुरु पाठ जी की वाणी का पाठ करते तो गारन्टी थी की सुनने वाला हर कोई मन्त्र मुग्ध हो जाता था। उनके परिवार में आज भी काफी अच्छे पाठी है पर पंडित प्रेम सिंह जी पर तो सद्गुरु जी की अलग ही कृपा थी ।

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